बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर कांग्रेस ने वादा किया है कि महागठबंधन की सरकार बनने पर बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के लिए ‘ओपन रिक्रूटमेंट सिस्टम’ और ‘राइट टू हेल्थ’ लाया जाएगा. उन्होंने कहा कि इसके तहत लोक सेवा आयोग की बजाए डीजी हेल्थ सर्विसेज अभ्यर्थियों के सर्टिफिकेट-डिग्री की वैधता की जांच कर इंटरव्यू के आधार पर उनको तुरंत नियुक्ति पत्र देंगे. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पूर्व में हरियाणा में यह सिस्टम ला चुकी है.
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एक पत्रकार वार्ता में कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है. इसमें सुधार तब तक नहीं होगा जब तक डॉक्टरों, लैब टेक्निशियनों, रेडियो लॉजिस्ट, नर्सों, गाइनोकोलाजिस्ट,स्पेशलिस्ट और रेगुलर डॉक्टरों की कमी रहेगी. उन्होंने कहा कि यह राजनीति का विषय नहीं है. उन्होंने कहा कि महागठबंधन सरकार बनने पर एमबीबीएस, गाइनोकोलाजिस्ट, डेंटिस्ट, हार्ट स्पेशलिस्ट सहित विभिन्न स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए डिग्री दिखाओ, इंटरव्यू दो और नौकरी पाओ सिस्टम लागू किया जाएगा. नर्सेज की कार्यक्षमता की विशेष ढंग से जांच कर उनकी नियुक्ति की जाएगी.
दूसरे चरण में 24 सीटों पर लड़ रही कांग्रेस
दूसरे चरण में जिन 94 सीटों पर चुनाव होना है उनमें कांग्रेस के खाते में 24 सीटें गई हैं. इनमें पिछले चुनाव में इसकी जीती हुई सीटों की संख्या सात है. खास बात यह है कि इस चरण की जो सीटें कांग्रेस को मिली हैं उनमें मात्र आठ पर ही गत चुनाव में वह लड़ी थी. शेष सीटें पार्टी के लिए नई हैं. इन सीटों पर भी जीत दर्त करना चुनौती है. रोसड़ा से चुनाव जीते पार्टी के बड़े नेता डॉ. अशोक कुमार इस बार कुशेश्वर स्थान से किस्मत आजमा रहे हैं. मांझी से चुनाव जीते पूर्व मंत्री विजय शंकर दुबे को पार्टी ने महाराजगंज से उतारा है. महिला कांग्रेस की अध्यक्ष बेगूसराय से चुनाव मैदान में हैं. पार्टी के बड़े नेताओं में शुमार कृपानाथ पाठक को भी इसी चरण में अपनी किस्मत आजमानी है. वह फूलपरास से उम्मीदवार हैं.
कांग्रेस के खाते में गईं दूसरे चरण की सीटें
नौतन, चनपटिया, बेतिया, र्गोंवदगंज, फुलपरास, कुशेश्वरस्थान, पारू, गोपालगंज, कुचायकोट, महाराजगंज, लालगंज, वैशाली, राजापाकड़, रोसड़ा, बेगूसराय, खगड़िया, बेलदौर, भागलपुर, राजगीर, नालंदा, हरनौत, बांकीपुर , पटना साहिब, बेनीपुर.
बिहार चुनाव में रोजगार मुख्य मुद्दा
बिहार के चुनावी समर में रोजगार मुख्य मुद्दा बनता दिख रहा है. चुनाव के नतीजों पर यदि इसका असर होता है तो फिर देश में आने वाले चुनावों में भी यह मुद्दा उभर सकता है. विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि रोजगार के मुद्दे से बिहार में चुनावी हवा बदली है. रोजगार के मुद्दे विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, कभी भी केंद्र में नहीं रहे. या यूं कहें कि युवाओं के मुद्दों की हमेशा उपेक्षा होती रही है. विपक्ष रोजगार के मुद्दे उठाता जरूर है, लेकिन कभी ऐसा नहीं दिखा कि यह चुनाव का प्रमुख मुद्दा बना हो और चुनाव पर असर डाला हो, लेकिन बिहार में जिस प्रकार से रोजगार का मुद्दा केंद्र बिन्दु में आ चुका है, इससे स्पष्ट संकेत है कि रोजगार के मुद्दे पर बिहार की राजनीतिक हवा बदल रही है.
भारत के संदर्भ में यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारी युवा आबादी बढ़ रही है. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में करीब 35 फीसदी आबादी युवा है. यह स्थिति करीब-करीब अगले दो दशकों तक बनी रहेगी, जिसके बाद युवा आबादी घटनी शुरू होगी. शिक्षा और तकनीकी शिक्षा का दायरा बढ़ने से वह रोजगार योग्य भी है.
सोशल मीडिया ने उनकी दिलचस्पी चुनावों में भी बढ़ाई है. रोजगार चाहने वाले बढ़ने और रोजगार की कमी से यह वर्ग अपने हितों को लेकर सतर्क हैं. इसलिए युवाओं के लिए रोजगार का मुद्दा है. इस मामले में बिहार के चुनाव नतीजे अहम होंगे. यह देखना होगा कि रोजगार का मुद्दा नतीजों पर कितना असर डालता है. दूसरे, क्या यह सिर्फ युवा मतदाताओं तक सीमित रहता है या फिर विस्तृत होकर आम लोगों का मुद्दा बन पाता है?
Source – Live Hindustan
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